Thursday, 15 June 2017

एक शेरदिल भुमिहार ब्राह्मण जो हजारो नक्सली पे भारी पड़े थे।

ये तस्वीर स्वर्गीय गायत्री सिंह की है जो ग्राम - उर विशुनपुर , पोस्ट - उर विशुनपुर , थाना- अलीपुर , जिला - गया के निवासी स्वर्गीय श्री #उदय नारायण सिंह जी के पुत्र थे , वे ४ भाइयों में दुसरे क्रम में थे . पुरे गया जिले और खास कर मगध क्षेत्र में इकलौते ऐसे शेरदिल भूमिहार थे, जिन्होंने अपने ४ भाइयों के बल पर हजारों की संख्या में आये #माओवादी नक्सलवादियों को मार भगाया था , 1990 की एक रात हजारों नक्सलवादियों ने आक्रमण करके उनको ४ भाइयों और हथियार समेत आत्मसमर्पण करने बोला गया .स्वर्गीय गायत्री बाबु ने उनको ललकारा , और जवाबी फायरिंग स्टार्ट की गयी , कहते हैं की बोरी से भर कर कारतूस रखने वाले और अपने ३ भाइयों के साथ ४ राइफल के बल पर , रात भर की फायरिंग के बाद सबको जान ले कर भागने पर मजबूर कर दिया गया . इस घटना की सुबह तत्कालीन एस. पी अनुराग कश्यप ने साहसी घटना की जमकर तारीफ की और 12 सिपाही साथ में 1 हवालदार को उनके दालान पर तैनात कर दिया , जो करीब ३ साल तक रहा . और इस बीच उग्रवादी भी उनके आस पास नहीं आये , ३ साल के बाद सबने ये सोच लिया की अब उग्रवादियों का डर नहीं , इस तरह पुलिस कैंप को हटा लिया गया , लेकिन उग्रवादी के निशाने पर हमेशा थे , 31 अक्टूबर 1995 की रात करीब 10 बजे उग्रवादियों ने घात लगा कर आक्रमण किया , जिसमे गाँव के कुछ विरोधी तत्वों की मिलीभगत शामिल थी, घर के आगे बने दालान के छत्त पर चारों भाई एक साथ सो रहे थे , आँख लग गयी थी और दालान के पश्चिम दिशा से सीढ़ी लगा कर उग्रवादी चढ़ गए, और ताबड़तोड़ फायरिंग स्टार्ट कर दिया , गायत्री बाबु समेत २ भाई स्वर्गीय नंदकिशोर सिंह एवं गिरजेश सिंह की मौके पर मौत हो गयी , एक भाई ने हाथ में राइफल ले कर सामने की तरफ कमरे में छलांग लगा दी , और मुकाबले के लिए तैयार हो गए , लेकिन किस्मत ख़राब थी , राइफल में मात्र ६ गोली जो मैगजीन में होती है , वही रह गयी शेष गोलियों का बेल्ट सिरहाने के पास रह गया , लेकिन उन्होंने हार न मानी उन ६ गोलियों के बल पर १ घंटे तक पास आने नहीं दिया , उस समय समाज की कायरता सामने आई जब ये लोग शहीद हो रहे थे तो किसी ने साथ नहीं दिया , कोई किसी के गाँव में आकर किसी को मार नहीं सकता जब तक वहां के लोग साजिश में शामिल न हो , घर फूटे गाँव लुटे , गाँव फूटे naxalite लुटे ये बात यही साबित हुयी . अंत में अवधेश बाबु भी उग्रवादियों के हाथ शहीद हो गए , लेकिन उनको मारना इतना आसान न था , अंत समय तक पारंपरिक हथियार से मुकाबला किये , और २-४ को घायल किये , और शहीद हो गए . उसके बाद नक्सलवादियों ने सभी को घर से बहार करके घर में आग लगा दिया , घर के सरे सामान, कपडे , आनाज को लूट ले गए . सुबह प्रान्त के सभी नेताजी लोग का जमावड़ा लगा , मुआवजा देने का और सान्तवना देने का सिलसिला चला . आज के समय सोचता हुँ कि वो अकेले हजारों नक्सलवादियों पर भारी पड़े थे , उनकी सहायता में समाज के लोग नहीं आये , बारा नरसंहार की घटना कुछ ऐसी ही थी .आज समाज के लोगों को वैचारिक रूप से सशक्त होने की जरुरत है !!!
साभार
✍️ विष्णुकान्त शर्मा

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